बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 चित्रकला - भारतीय वास्तुकला का इतिहास बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 चित्रकला - भारतीय वास्तुकला का इतिहाससरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 चित्रकला - भारतीय वास्तुकला का इतिहास - सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- बाघ की गुफाओं के चित्रों का वर्णन एवं उनकी सराहना कीजिए।
सम्बन्धित लघु उत्तरीय प्रश्न
1. बाघ की गुफाओं के चित्रों का परिचय दीजिए।
2. बाघ की गुफाओं की क्या विशेषता हैं?
उत्तर -
अजन्ता के बाद गुफा के चित्रों की परम्परा बाघ की गुफाओं में दृष्टिगोचर होती है। ये गुफाएँ मध्य प्रदेश में, धार जिले के अन्तर्गत, विन्ध्य श्रेणी में भीलों की बस्ती में विद्यमान हैं। सन् 1907-08 में ये गुफाएँ प्रकाश में आईं। ये गुफाएँ नर्मदा की सहायक नदी बाघ के तट पर स्थित हैं। इसी कारण इन गुफाओं को बाघ की गुफा कहा जाता है। ये गुफाएँ इस नदी से 150 फीट की ऊँचाई पर हैं। ये कुल 9 गुफाएँ हैं जिनका सामना लगभग 750 फीट है। इनमें पहली गुफा को गृह गुफा कहते हैं। यह गुफा चार स्तम्भ वाली है और एक 23 x 24 फीट के कमरे के समान है। यह गुफा भग्न अवस्था में है। दूसरी गुफा में एक इतिहासिक महत्त्व का महाराज सुबन्दु का तामपत्र मिला है। यह एक वर्गाकार चैत्य है। तीसरी गुफा को हाथीखाना कहते हैं। इसमें सुन्दर चित्र बने हुए हैं। यह विशिष्ट अतिथियों के लिए बनाई गयी थीं। इसी गुफा में दो हाल हैं। इसमें बोधिसत्व के चित्र बने हैं जिससे यह चैत्य गुफा लगती है। चौथी गुफा रंग महल के नाम से प्रसिद्ध है। इसकी दीवार तथा छत पर चित्र बने हुए हैं। यह दूसरी गुफा से मिलती-जुलती है। इसके बीच का हाल 94 फीट लम्बा है। पाँचवीं गुफा में छतों, दीवारों और स्तम्भों में टेम्परा चित्र हैं। छठी गुफा एक 46 फीट का वर्गाकार हाल है। चौथी व पाँचवीं गुफा के आगे एक 200 फीट का बरामदा था जो गिरा चुका है। शेष तीनों गुफाएँ नष्ट हो गयी हैं।
बाघ की गुफाओं के सम्बन्ध में काफी मतभेद हैं। कुछ विद्वानों ने इन्हें अजन्ता की गुफाओं के समकालीन कहा है। स्मिथ ने इनका समय 626-628 ई० माना है जबकि अजन्ता की पहली व दूसरी गुफा का निर्माण हुआ था। महाराज सुबन्धु के ताम्र पत्र के अनुसार इन गुफाओं का समय चौथी एवं पाँचवीं शताब्दी आता है क्योंकि इतिहासकारों के अनुसार महाराज सुबन्धु का समय 416-486 ई० माना जाता है। इस ताम्र पत्र के लेख अनुसार इन गुफाओं का नाम पहले 'कलयन' था और इनके खर्चे के लिए 'दसिलिका पल्ली' नाम गाँव दिया गया था, परन्तु अब इसका कोई निशान नहीं मिलता।
इन चित्रों की प्रतिकृतियाँ उतारने वाले प्रथम कलाकारों में सर्व श्री एस०एन० सरकार, वी० एन० आप्टे, एस० भाण्ड, नन्दलाल बोस, श्री ए०वी० भोंसले, बी०वी० जगताप व असित कुमार हालदार का नाम उल्लेखनीय है। गूजरी महल में इनकी प्रतिलियाँ बनाई। इन गुफाओं पर श्री नन्दलाल बोस व श्री डी०ई० इम्पी आदि ने लेख लिखे।
बाघ गुफाओं के चित्र
बाघ की गुफाओं में 'रंगमहल' तथा चौथी गुफा में अधिक सुरक्षित चित्र हैं। इसमें निम्नलिखित छ: चित्र हैं-
1. वियोग - इस चित्र में दो महिलायें एक मण्डप में बैठी हैं। एक शोकाकुल स्त्री चित्रतल के मध्य में अपने सफेद आँचल से मुँह छिपायें बैठी है। दूसरी स्त्री उसे सांत्वना दे रही है। छज्जे की छत में दो कबूतरों का चित्रण है जो इस वातावरण को और अधिक स्पष्ट कर रहा है।
2. मन्त्रणा - बाघ की गुफा के दूसरे चित्र में चार पुरुष सुखासन मुद्रा में बैठे हुए दिखाये गये हैं। चारों ने धारीदार वस्त्र पहन रखे हैं। इनमें से बाँयें ओर की पुरुषाकृति किसी राजा की मालूम होती है। ये राजा व मन्त्रिगण किसी गहन विषय पर विचार-विमर्श कर रहे हैं तथा हस्त मुद्राओं के संकेतों तथा नेत्रों की चितवन तथा रंगों के ताल-मेल से संयोजन में परिपक्वता दिखाई देती है।
3. देव पुरुषों का आकाश विचरण - इस चित्र में छः व्यक्तियों का समूह आकाश में विचरण करते हुए दिखाया गया है। जो सबसे आगे वाली आकृति धोती पहने हैं तथा हस्त मुद्रा वरद् रूप में है किसी प्रमुख धर्माचार्य की आकृति हो सबके सिर पर बाल नहीं है।
4. नृत्यांगनाएँ व वादिकाएँ - नर्तक का मध्य में बना आकर्षक रूप और उसकी वेश-भूषा में चित्रकार ने प्रभाविता के सिद्धान्त का पालन किया लगता है। पुरुष आकृति को पराग़ क्षेत्र में तथा स्त्रियों पुष्प, पंखुड़ियों के समान फहराती दिखाई है। यह चित्र सर्वोत्तम चित्रों की श्रेणी में आता है। खड़े व्यक्ति के चारों ओर स्थित छः वादिकाएँ उसके प्रभाव को द्वि-गुणित कर रही है। यहाँ भी प्रभावित युक्त वर्तुलाकार संयोजन किया गया है।
5. गायिकाएँ - कुछ विद्वानों ने इसे तृतीय चित्र का ही भाग माना है। इसमें एक गायिका ने एक हाथ में वीणा ले रखी है। इस चित्र में ईरानी नीला रंग भरा हुआ है। जिसका प्रयोग अजन्ता में कहीं-कहीं पर देखने को मिलता है।
6. शोभा यात्रायें - हाथियों व घोड़ों पर राजपरिवार व सिपाहियों को बैठा हुआ दर्शाया गया है। इस प्रखण्ड में क्रमशः हाथी व घोड़ों की शोभा को दिखाया गया है। हाथी के विशालकाय तन बदन को रेखीय गति से सौन्दर्य सम्पन्न बनाने में भारतीय कलाकार शुरू से ही पारंगत हो गये थे। चित्रों को देखकर इसी परिणाम पर पहुँचा जा सकता है कि ये चित्र वास्तविक जीवन के प्रतिरूप है, इन भित्ति चित्रों का बुद्ध की जातक कथाओं आदि से कोई सम्बन्ध नहीं था तथा सम्पूर्ण चित्र खण्ड हँसी-खुशी तथा दुःख-सुख जीवन विलास सम्बन्धी इसका जीवन्त उदाहरण है। पाँचवीं से नवीं संख्या की गुफाओं में भी चित्रावशेष होने के संकेत मिलते हैं लेकिन वर्तमान में इन गुफाओं में कुछ भी प्राप्त नहीं होता है।
बाघ की गुफाओं की विशेषता
1. नारी सौन्दर्य - अजन्ता के समान ही यहाँ भी नारी में शारीरिक सौन्दर्य के साथ आध्यात्मिक सौन्दर्य की छवि को दिखाया गया है। केश विन्यास में नारी के अधिकतर जुड़े बनाये गये हैं। लेकिन अधिकतर जूड़े में विभिन्नता के दर्शन होते हैं।
2. वस्त्राभूषण - नारी के वस्त्राभूषण भी कुछ-कुछ अजन्ता के मिलते-जुलते हैं। लेकिन आकृतियों को कुछ कम आभूषण पहनाए गये हैं तथा विभिन्न रंगों से वस्त्रों का आकर्षण और अधिक बढ़ गया है।
3. प्रकृति-चित्रण - बाघ की गुफाओं में प्रकृति का मनोहारी चित्रण हुआ है। एक बगीचे का चित्रण है जोकि अब अस्पष्ट है परन्तु दशा में सुन्दर होगा विभिन्न लता पुष्पों से आलेखन किया गया है। गुफाओं के पास फैली जंगली हरितिमा और भलों की बस्ती की पुराने दिनों की याद ताजा कर देती है।
4. पशु-पक्षियों का चित्रण - यहाँ पशु-पक्षियों का सुन्दर तथा सजीव चित्रण हुआ है। तोता, मैना, कबूतर, हँस, मोर व सारस आदि का अंकन अजन्ता से मिलता-जुलता है। पक्षियों को प्रतीकात्मक रूप से भी बनाया गया है। घोड़े, हाथी तथा बैल भी बहुत सुन्दर बनाये गये हैं।
5. विविधता - यहाँ के चित्रों में धार्मिकता का आभास नहीं होता है। यहाँ के चित्रों में जीवन की विविधता मिलती है। कहीं नर्तक हैं तो कहीं गायक, कहीं विरहाकुल नारी है, तो कहीं पर हाथी घोड़ों के जुलूस आदि बाघ गुफा के सभी चित्रों में एक साथ एक समय बने प्रतीत होते हैं। लेकिन बाघ के वर्तमान चित्रों से केवल राजसी जीवन के कुछ अंशों का बोध होता है।
6. भाव - बाघ गुफा में जो भी भाव चित्रकार ने दिखाना चाहा है उसमें वह सफल हुआ है। जैसा कि विरहाकुल स्त्री के चित्र से स्पष्ट हो जाता है। कहीं-कहीं भाव भंगिमा अजन्ता से कुछ-कुछ मिलती-सी प्रतीत होती है।
7. भावाभिव्यक्ति - शैडिंग में अजन्ता शैली को ही अपनाया गया है। अतः ऐसा प्रतीत होता है कि अजन्ता के किसी कुशल चित्रकार के निर्देशन में बाघ चित्रों का सृजन हुआ है।
निश्चय ही बाघ के चित्रों का अवलोकन करने पर मन को स्मरणीय और आत्मिक तृप्ति होती है।
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